अभी-अभी यह ख़बर पढ़ी कि सिक्किम डेमोक्रेटिक पार्टी [एसडीएफ] ने सिक्किम की सभी विधानसभा सीटों और एकमात्र लोकसभा सीट पर बहुमत हासिल कर लिया हैं। सम्पूर्ण सिक्किम में एक भी अन्य दल एक भी सीट न पा सका। सम्पूर्ण सिक्किम विधानसभा विपक्ष विहीन हैं।
लोकतंत्र को की जनता का, जनता द्वारा और जनता के लिए शासन के रूप में परिभाषित किया जाता हैं उसमे जनता का हित का ध्यान रखने के लिए विपक्ष का बड़ा हाथ होता हैं। विपक्ष प्रजा के लिए एक परिक्षण और नियंत्रण की ऐसी व्यवस्था के रूप में कार्यरत होता हैं जो यह निश्चित करता हैं की एक दल, एक विचारधारा और एक व्यक्ति तानाशाह का रूप न ले सके- समाज के हितार्थ निर्णय लेने के लिए और वैचारिक भिन्नता के चलते उस निर्णय के सभी पक्षों को जांचने के लिए विपक्ष का होना अत्यन्त आवश्यक हैं। लोकतंत्र में वैचारिक भिन्नता, क्षेत्रीय मुद्दों और नेताओं का ज़मीन से जुडा होना यह सुनिश्चित करता हैं की एक सदन में कम से कम दो पक्ष तो हो। किंतु गणितीय आधार पर केवल एक दल के सत्ता में आने की क्षीण संभावना तो रहती हैं किंतु हर लोकतंत्र में ऐसा कभी न होगा सोच कर एक दलीय सत्ता के विषय में, मेरे ज्ञान ,संविधान प्रदत कोई व्यवस्था नहीं हैं। इस बार सिक्किम में यह चमत्कार हो गया हैं और चामलिंग चौथी बार सरकार बनाने जा रहें हैं...
किंतु क्या एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए विपक्ष के आवश्यकता को ध्यान में रख कर क्या सिक्किम में पुनः चुनाव होने चाहिए (अथवा राष्ट्रपति शासन होना चाहिए ) या जनादेश का पालन करते हुए विपक्ष विहीन शासन होना चाहिए। इस व्यवस्था में संविधान क्या कहता हैं? आपके विचार और राय जानना चाहूँगा...साथ ही यदि कोई पाठक इस विषय पर संविधान प्रद्दत व्यवस्था के विषय में जानते हो तो बताएं।
Sunday, May 17, 2009
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