Sunday, July 5, 2009

ढोल,गँवार ,सूद्र ,पसु ,नारी... की चौपाई अप्रवासी की दृष्टि से

अभी कुछ दिनों पूर्व 'बालसुब्रमण्यम जी' के चिठ्ठे को पढ़ रहा था। उन्होंने तुलसीदास के हिन्दी भक्तिकाल को योगदान के विषय में लिखा हैं। तुलसीदास मेरे भी प्रिय रचनाकारों में से हैं। तुलसी राम चरित मानस के साथ ही हम बड़े हुयें हैं। मुझे अपने दादाजी याद आते हैं जिनके पास हर विषय के लिए एक तुलसी की चौपाई या दोहा हुआ करता था। उनके ही सानिध्य और अपने पिता जी के अनुकरण से हर शनिवार सुंदरकांड पढने की भी आदत हो गई हैं। वैसे भी घर पर कुछ भी शुभ हो तुलसी की रामायण तो रखी ही जाती हैं। तुलसी के प्रति मेरा आकर्षण न केवल उनकी सहज भाषा के कारण हैं बल्कि बालकाण्ड और उत्तरकाण्ड की कई चौपाईयों में जिंदगी का फलसफा मिलता हैं जोकि जितना भक्तिकाल काल में प्रासंगिक था उतना ही आज के वातावरण में....


तुलसी के आलोचक अक्सर उनके नारी विरोधी वर्णन के कारण उन्हें आरोपित करते रहें हैं। इस प्रसंग में मुख्यतः सुन्दरकाण्ड की यह चौपाई उद्दारित की जाती हैं "ढोल,गँवार ,सूद्र ,पसु ,नारी।सकल ताड़ना के अधिकारी।।"। वे तुलसी जिन्हें सारे जग में अपने प्रभु का रूप दीखता हैं - निज प्रभुमय देखहिं जगत केहि सन करहिं विरोधा , जिनकी रचना में हर पात्र मर्यादा में इतना रचा-बसा हैं कि पर-स्त्री का मान माता के अतिरिक्त कुछ होता ही नहीं...रावण जैसा रक्ष-संस्कृति का प्रणेता भी अपनी भार्या के बिना सीता से मिलने नहीं जाता हैं, अपनी बंदिनी सीता को काल-कोठरी की जगह अशोक (जहाँ शोक ही न व्याप्त हो) वाटिका में रखता हैं। उसका मत नारी को मार-पीट के योग्य मान ही नहीं सकता। इसी प्रकार जहाँ शबरी का झूठा भी बिना भेदभाव के प्रभु प्रेम से खाते हैं, निषाद को मित्रवत गले लगाते हैं वहां शूद्रों को भी मारने पीटने के योग्य कैसे माना जा सकता हैं?


अधिकांशतः तुलसी प्रेमी इस चौपाई के आधार पर तुलसी को नारी-विरोधी नहीं मानते. कुछ तो इस चौपाई को तुलसी कृत मानते ही नहीं...बालसुब्रमण्यम जी ने भी इस चौपाई को प्रक्षिप्त माना हैं। इस निबंध को पढने के बाद मैंने कई अन्य चिठ्ठों पर भी इस चौपाई का विश्लेषण देखा और पाया कि विभिन्न बुद्धिजीवी इस चौपाई के विषय में विविध मत रखते हैं किंतु कोई भी इस चौपाई से तुलसी की महत्ता को कम नहीं आंकता। बालसुब्रमण्यम जी के अतिरिक्त फ़ुरसतिया जी भी इस चौपाई को स्वं सागर के द्वारा कथित वचन मान राम और तुलसी को इस व्यक्तव के आरोप से मुक्त करते हैं (देखें)। इसी प्रकार रंजना सिंह जी कई प्रकरणों में नारी उत्थान और शूद्र प्रेम के उदाहरण के स्थान पर आलोचकों द्वारा केवल एक चौपाई पर तुलसी को नारी विरोधी मानने पर आपत्ति रखती हैं। साथ ही उन्होंने तुलसी के "ताड़ना" शब्द को 'नियंत्रण' के स्थान पर उपयुक्त बताया हैं (देखें)। इसी प्रकार एक अन्य वरिष्ठ चिठ्ठाकार "लक्ष्मीनारायण गुप्त" सागर के वचनों का राम के मूक समर्थन के कारण राम और तुलसी को नारी विरोधी आरोप से मुक्त तो नहीं करते किंतु वाल्मीकि रामायण के अंश देकर ये अवश्य कहते हैं कि अन्य रचनाओ में नारी विरोधी होने के उद्धरण नही हैं। इस प्रकार एक अन्य चिठ्ठे में ऋषभ जी के अनुसार तुलसी जी केवल तीन श्रणियों के बारे में लिखते हैं जैसा कि ढोल , गँवार-सूद्र ,पसु-नारी और ताड़ना का अर्थ डांटने डपटने से हैं। इन सभी ज्ञानवान सहयोगियों के मत का सम्मान करते हुए मैं इस विषय में अपने विचार भी रखना चाहूँगा।


वैसे तो ताड़ना शब्द के अर्थ "मरना" के अतिरिक्त नियंत्रण और डांटना से तो परिभाषित हैं किंतु इस अर्थो के अतिरिक्त ताड़ना का एक और अर्थ हैं -वो हैं पूर्व-अनुमानित करना। भारतीय साहित्य संग्रह की वेब साईट (पुस्तक डॉट ओआरजी ) पर ताड़ना शब्द के कई अर्थों में से एक हैं - "स। [सं.तर्कण या ताड़न] कुछ दूरी पर लोगों की आँखे बचाकर या लुक-छिपकर किये जाते हुए काम को अपने कौशल या बुद्धि-बल से जान ये देख लेना।" जिस सन्दर्भ और घटना जिस में यह उक्ति प्रयुक्त हुई हैं उसमे यह ही अर्थ सटीक बैठता हैं। सागर राम को उनके ईश्वरीय रूप की दुहाई देते हुए कहता हैं कि हे प्रभु आप की ही प्रेरणा से रचित आकाश, वायु, अग्नि, जल और धरती सभी जड़ता के (अवगुण) से ग्रसित हैं। इस विषय में सभी ग्रन्थ भी उनकी जड़ता से बारे में कहते हैं। अतः आप मेरी इस जड़ता को क्षमा करें। इस विषय पर वाल्मीकि भी कुछ ऐसा ही वर्णित करते हैं - "पृथिवी वायुराकाशमापो ज्योतिश्च राघव। स्वभावे सौम्य तिष्ठन्ति शास्वतं मार्गमाश्रिताः।।तत्स्वभावो ममाप्येष यदगाधोहमप्लवः। विकारस्तु भवेद् गाध एतत् ते प्रवदाम्यहम्।" हे राघव ! धरती, आकाश, वायु, जल और अग्नि अपने शास्वत स्वभाव के आश्रित रहते हैं (अपनी जड़ता को कभी नहीं छोड़ते) ।


तुलसी रचना में, तदुपरांत सागर उलाहना देता हैं कि हे प्रभु आप मुझपर शक्ति प्रयोग कर जो सीख देना चाहते हैं वो तो उचित हैं (क्योकि आप सर्वशक्तिवान प्रभु हो) किंतु मैंने तो जड़वत रहकर आपकी ही मर्यादा निभाई हैं। हे प्रभु आपको भी मेरी जड़वत अवस्था ठीक उसी प्रकार पहले ही जान जानी (ताडनी) चाहिए जिस प्रकार भद्र पुरूष वाद्य-यन्त्र (ढोल), असभ्य (गंवार ), नीच (शूद्र), पशु और नारी को देखकर अपने आचरण को पूर्वानुमानित कर लेते हैं।

जिस प्रकार किसी भी वाद्य-यन्त्र से मिलने से पहले अर्थात उसको बजाने से पहले जाँच परखकर कर उसकी स्थिति भांप (ताड़) लेनी कहिये। इससे उसके साधक को उसे बजाने में उचित सहजता रहेगी। इसी प्रकार जब आप किसी असभ्य (गंवार या प्रचिलित रीति-रिवाजों से अनभिज्ञ) व्यक्ति से मिलने से पहले उसके हाव-भाव और उसकी मनोदशा को ताड़ लेना चाहिए और उसके अनुसार उससे मिलना चाहिए जिससे एक-दुसरे के प्रति असहजता न हो। इसी क्रम में तुलसीदास कहते हैं किसी भी नीच (या व्यावारिक स्तर पर शूद्र) व्यक्ति से मिलने पर उसके आचरण को ताड़ने (भांपने) का प्रयास करना चाहिए - इस प्रकार के पूर्वानुमानित आचरण से आप उस व्यक्ति से सम्मुख स्वं को बचा पाएंगे (अन्यथा नीच का क्या भरोसा और वो अपने आचरण से कब आपका अपमान या तिरस्कार कर दे)। किसी भी पशु को देखकर उसके व्यवहार का पूर्वानुमान (ताड़ना) अत्यन्त आवश्यक हैं - क्या वो हिंसक, वन-निवासी पशु हैं या पालतू जीव हैं... क्या वो आक्रामक हो सकता हैं (जैसे सिंह) या स्नेहाकांक्षी पशु हो सकता हैं (जैसे श्वान या मृग)। इसके पश्चात तुलसी नारी का उदाहरण देते हैं और कहते हैं कि किसी भी नारी से मिलने से पहले भी उसके व्यवहार और आकांक्षा का पूर्वानुमान (ताड़ना) आवश्यक हैं - जैसे वो स्त्री आपसे क्या अपेक्षा रखती हैं, क्या आपको उससे एकांत में मिलना उचित हैं या नहीं इत्यादि... (विशेष रूप से जब आप यहाँ ताड़ने का अर्थ भांपने से लेते हैं तो ये चौपाई नारी के प्रति आदर्श आचरण का उदाहरण हो जाती हैं जोकि रामायण से चरित्र के अनुरूप हैं)। सागर प्रभु राम से उलाहना देते हुए कहता हैं कि जिस प्रकार इन पॉँच परिस्थितियों में पूर्वानुमान आवश्यक हैं उसी प्रकार आपको मेरी जड़वत प्रकृति (जोकि आपके द्वारा ही रचित हैं) का पूर्वानुमान होना चाहिए था। फ़िर भी हे प्रभु आप मुझपर क्रोध कर रहे हैं.... तदुपरांत सागर नल नील के बारे में वार्ता करता हैं।

सम्भव हैं कि बहुत से प्रबुद्ध जन मेरे मत से सहमत न हो या वे इस चौपाई को नए आयामों में देखें। किंतु वर्तमान मेरे रामायण से अल्प साक्षात्कार से जो मुझे सही लगा और जो रामायण की मर्यादा निष्ठ कथांकन और तुलसी की अन्य आध्यायों में नारी समर्पण और सर्व-वर्ग कल्याण की भावना के अनुरूप लगा उसे मैंने आपके सम्मुख रखने का प्रयास किया हैं। आप इस सन्दर्भ में अपने विचार अवश्य बताएं।

7 comments:

बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायण said...

बहुत अच्छा लिखा है आपने। हमारे इन प्राचीन ग्रंथों को फेस-वैल्यू पर लेना उनके प्रति अन्याय होगा। ये सब भिन्न परिस्थितियों में लिखे गए थे, और इनमें अनेक स्तरों पर अर्थ विद्यमान है। इन्हें बारबार पढ़ने पर ही और इनके संदर्भ को ध्यान में रखते हुए पढ़ने पर ही इनका सही अर्थ प्रकट होता है, और ये हमारी वर्तमान परिस्थितियों के लिए उपयोगी बनते हैं।

ताड़न शब्द के 'बूझना' वाले अर्थ को लेकर आपने ढोल, पशु, नारी ... वाले दोहे की जो व्याख्या की है वह ठीक ही लगती है।

संगीता पुरी said...

सहमत हूं आपसे .. बहुत अच्‍छा विश्‍लेषण किया है आपने .. ताडना का अर्थ पूर्वानुमान लगाना हो सकता है .. क्‍योंकि हिन्‍दू धर्म में कहीं भी नारी का अपमान नहीं किया गया है ।

अजित गुप्ता का कोना said...

जो लोग भी तुलसीदास जी को नारी विरोधी कहकर उसकी आड में रामचरित मानस का विरोध करते हैं वे स्‍वयं अपने अन्‍दर झांककर देखे कि वे नारी का कितना सम्‍मान करते हैं। तुलसी दासजी ने समुद्र के मुख से चौपायी कही है लेकिन आज के आलोचक तो स्‍वयं ही नारी का मखौल उडाते रहते हैं। ऐसे आलोचकों को सफाई देने की आवश्‍यकता कहाँ है? जो भी तुलसीदास जी की आलोचना करे उससे पूछ लेना चाहिए कि भई आप तो नारी का सम्‍मान करते हैं ना बस करते रहिए, देश सुधर जाएगा।

बलबिन्दर said...

जब इसी बात को मैंने कहा था तो क्या जवाब मिला था देखिये.

इसी सन्दर्भ में इस पोस्ट और आगे पीछे की टिप्पणियाँ भी पढ़ जाइयेगा

डॉ. मनोज मिश्र said...

अब क्या कहें ,इस पर फिर नई चर्चा न शुरू हो जाय.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

मेरे विचार से लोगों ने इस चौपाई का अर्थ ठीक से नही समझा।
"ढोल,गँवार ,सूद्र ,पसु ,नारी।
ये सब तारन के अधिकारी।।
अर्थात् ये तो भव सागर से पार करने वाले हैं।

Unknown said...

तुलसीदास जी कहते हैं कि
'नारी सेती नेह, बुधि विवेक सबही
हरै।
वृथा गॅंवावै देह, कारज कोई न सारै।।
यानी स्त्री के प्रति वासनात्मक बुद्घि रखने पर
वह आपके बल, बुद्घि और विवेक यानी अच्छे बुरे का
विचार करने का ज्ञान खत्म कर देती है। ऐसा व्यक्ति
कोई भी कल्याणकारी काम नहीं कर
पाता है। इसलिए स्त्रियों के प्रति मन में आदर, श्रद्घा और सम्मान का
भाव रखना चाहिए।

Related Posts with Thumbnails