भारत में जातिप्रथा उन्मूलन को लेकर हमेशा ही विवाद बने रहते हैं। और इसमे कोई अतिशयोक्ति भी नहीं हैं कि कागजी उन्मूलन के बावजूद चुनावी गणित से लेकर सहज ग्रामीण जीवन में इसके लक्षण दिख ही जाते हैं। किंतु अंतर्राष्ट्रीय मंच पर मूल रूप से नस्ल भेदी आचरण कम ही दिखता हैं....और कम से कम बहुराष्ट्रीय कंपनियों से तो ऐसी आशा कम ही की जाती हैं (हाँ- हिंदू-भावनाओं की बात अलग हैं ) किंतु कभी-कभी जाने -अनजाने कुछ ऐसी घटनाएँ हो जाती हैं (जो कि इन बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के शीर्ष पर बैठे व्यक्तियों की त्रुटिवश भी हो सकता हैं) जो इनकी छवि को धूमिल करने के लिए काफी होती हैं।
अभी हाल में ही माइक्रोसॉफ्ट ने अपनी पोलिश वेबसाइट पर एक श्याम वर्णी व्यक्ति की तस्वीर को पोलैंड के लिए एक गोरे व्यक्ति की तस्वीर से बदल दिया था (देखें) । संभवतः यह पौलैंड के लोगों की मान्यताओं के अनुसार ही किया गया होगा। इसे टारगेट मार्केटिंग और मार्केट सेगमेंटेशन के दृष्टि से उचित मान कर शायद अंजाम दिया गया होगा। इसके फलस्वरूप हर जगह माइक्रोसॉफ्ट की जबरजस्त भर्त्सना हुई। इसके रहस्योद्घाटन के बाद आनन -फानन इसका सुधार भी हो गया। माइक्रोसॉफ्ट ने ट्विट्टर पर अपनी गलती स्वीकार करते हुए माफ़ी भी मांग ली। किंतु इस घटना से जो नुक्सान होना था वो तो हो ही गया।
इस घटना से दो बातें उभरकर आती हैं -
१) इस प्रकार से नैतिक मूल्यों और मापदंडों को ताक पर रखकर मार्केट सेगमेंटेशन और टारगेट मार्केटिंग कितनी उचित हैं
२) क्या युरोपिय राष्ट्रों में अभी भी श्याम-वर्णीय लोग प्रचार साधनों में भी स्वीकार नहीं हैं ?
यह दोनों ही बातें मानवीय और नैतिक दोनों ही आधारों पर क्षोभ का विषय हैं । इनकी जितनी भी निंदा /भर्त्सना की जाए कम हैं । हमारे भारतीय समाज पर ऊँगली उठाने से पहले पश्चिमी जगत को अपने अन्दर व्याप्त इस तरह के रंग-भेद से ख़ुद भी छुटकारा पाना होगा। (पर यह घटना हमारी जातिभेद की के प्रति जिम्मेदारियों को समाप्त नहीं करती और हमे जातिगत भेदभावों के उन्मूलन के लिए कार्यरत रहना ही होगा )
Sunday, August 30, 2009
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1 comment:
ओर हम इन गोरो की नकल करते है, इन के आगे पलके बिछाते है....:)
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