Sunday, March 29, 2009

यह तो मेरे ख्याबों का भारत नहीं...

भारतीय लोकतंत्र का महासमर शुरू हो चुका हैं। जिस प्रकार होलिका दहन के पश्चात् होली शुरू हो जाती हैं उसी प्रकार चुनाव आयोग की घोषणा के बाद भारतीय लोकतंत्र में कीचड़ उछाल होली शुरू हो चुकी हैं... परन्तु भारतीय लोकतंत्र को शर्मसार करने के लिए वरुण गाँधी ने जो बयान दिया हैं उसने तो मेरे ह्रदय को ही उदिग्न कर दिया हैं...लखनऊ की सरज़मीन पर गंगा जमुनी तहजीब के बीच अपना शैशव का उदभव और यौवन की तरुणाई देखने वाले इस ह्रदय को एक आघात सा लगा। बरेली में माँ चुन्ना मियाँ के मन्दिर जाती थी (जोकि लक्ष्मी नारायण के मन्दिर के नाम से भी जाना जाता हैं) उस मन्दिर का निर्माण एक मुस्लिम ने कराया था...

गाँधी के परिवारवाद से त्रस्त कांग्रेस ने मुझे कभी भी नहीं लुभाया (मेरे पिताजी एवं दादाजी के विचार मुझसे इतर हैं) जातिवाद के घृणित अवसाद से पीड़ित नेताजी और बहनजी का समाजवाद भी मुझे कभी आकर्षक नहीं लगा। इस कारण मेरे जैसे कई राष्ट्रवादियों के लिए भाजपा के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं हैं । जब वरुण गाँधी और मेनका ने भाजपा का दमन पकड़ा तो थोड़ा अटपटा तो लगा पर मन के किसी कोने ने उसका स्वागत भी किया। वरुण मुझे कतिपय युयुत्सु की तरह लगे जो परिवारवाद के मोह से ग्रस्त कौरवों को छोड़ कर पांडवों से आ मिले हो। पर अभी हाल में वरुण के दिए व्यक्तवों को देखा और सुना (http://www.in.com/videos/watchvideo-varun-gandhis-antimuslim-speech-2644997.html) तो मन त्राहिमाम्, त्राहिमाम् कर उठा। राजनैतिक लाभ हेतु दाल में नमक जितनी बयानबाजी को तो सैदव से ही देखते आए इस मन को सहसा विश्वास ही नहीं हुआ की कोई नेता ऐसा कर सकता हैं। इस चुनावी माहौल का ये तीसरा झटका कुछ ज्यादा ही ज़ोर से लगा (बहनजी का मनुवादी प्रेम और नेताजी का कल्याण प्रेम इस चुनाव के पहले दो झटके थे)। उनके इस व्यक्तव से मुझे संजय गाँधी याद आ गए। कहते भी हैं "माई गुन बछ्डू, पिता गुन घोड़। नाही ज्यादा ता थोड़े-थोड"....

वरुण के इस बयान की जितनी भी आलोचना की जाए कम हैं। परदेश में लाखों मील की दूरी पर बैठे इस मन में ऐसे भारत की तस्वीर तो नहीं हैं। एक सशक्त शक्तिशाली गौरान्वित भारत की छवि के स्वप्न से साथ जीते इस अप्रवासी मन में वरुण के भारत की कामना भी पाप हैं।

अधीर,
अप्रवासी

3 comments:

निर्मला कपिला said...

apne bilkul sahi kaha hai uski ma ne bhi kabhi bharatiye parampara ka nirvah nahi kya usse achha to ek videshi uvati soniaji hain jisne pati ki virasat ko svabhimaan se chalaaya hai varunjese neta desh ke liye khatarnak hain mujhe lagta hai bharat me bhi BJP ek naya taliban banaane par tuli haichup na rehne ke liye dhanyvaad vikalp ki talash bhi karen varna thhodi bahut congress par hi nirbhar rehna padega

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

भई ये आपका क्या,किसी के भी ख्वाबों का भारत नहीं है..राजनीति का ये विकृ्त रूप देखकर तो मन व्यथित होने लगा है.

Smart Indian said...

बचपन में एक कहावत सुनता था, "लंका में सब बावन गज के." आज की राजनीति में यह बात बिलकुल सच है.

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