आज सायंकाल मैं राजशेखर व्यास लिखित पुस्तक "सरहद पार सुभाष - क्या सच:क्या झूठ!"पढ़ रहा था। इस पुस्तक में भी नेताजी सुभाष चाँद बोस और पंडित नेहरू के रिश्तों पर चर्चा के दौरान कुछ पंक्तिया ऐसी मिली जिसमे महापुरुषों के सम्बन्ध में हमारी भारतीय मानसिकता का विश्लेषण किया गया। यह पंक्तिया वर्तमान सन्दर्भ में जिन्ना, पंडित नेहरू और सरदार पटेल के विभाजन सम्बन्धी विवाद में भी सटीक बैठती हैं। मैं समझता हूँ कि हम सभी को स्थापित मापदंडों से निकलकर राष्ट्र हित को ध्यान में रखकर विभाजन का विश्लेषण करना होगा। विभाजन एक सच्चाई हैं जिससे नकारा नहीं जा सकता किंतु उसके कारकों के अध्धयन से राष्ट्र को भविष्य के लिए यथोचित सीख मिलेगी। वर्तमान सन्दर्भ में "सरहद पार सुभाष - क्या सच:क्या झूठ!" से राजशेखर व्यास के निम्न विचार पढिये और बतायें कि क्या आप इसे सहमत हैं या नहीं...
"...प्रायः हम अपने महापुरुषों की पुण्य-तिथियों और जन्म-दिवसों पर उनकी गुण-गाथा और यश-गान ही गाया करतें हैं, उनकी आलोचना या कमजोरी को सच्चाई और ईमानदारी से कहने और सहने का नैतिक साहस भी हम में नहीं हैं । क्या हम यह समझते हैं की हमारे महापुरूष इतने कच्चे हैं कि वे आलोचनाओं से ढह जाएँगें? दुसरे उनकी आलोचनाओं को उनके प्रशंसक, अनुयायी अपनी व्यक्तिगत आलोचना मान लेते हैं तथा उसे अपने अहम् और सम्मान का प्रश्न बना लेते हैं। एक प्रवृति और दखी गई है, जब भी कोई आलोचक, विद्रोही, प्रचलित परम्परा, मान्यता, विश्वास और सिद्धांतों को तोड़ने का साहस या प्रयत्न करता है तो उसे भी घमंडी या अहंकारी समझा जाता है। प्रायः यह भी देखा गया है कि महापुरुषों के समर्थक इतने अंध श्रद्धावान या कट्टर होते हैं कि उनके खिलाफ सच्चाई का एक शब्द भी सुनना पसन्द नहीं करते। संभवतः वे यह समझते हैं कि अगर उनके प्रेरक का ही व्यक्तित्व ढह गया या स्वयं ही कमजोर, अक्षम या ग़लत साबित हो गया तो उनका स्वयं का अस्तित्व भी तब कहाँ जाएगा , और अपने अस्तित्व ढहने जी कल्पना मात्र से ही हम लोग इतने आतंकित रहते हैं कि सच्चाई कहने -सुनने का साहस भी खो बैठते हैं। "
3 comments:
"....अपने अस्तित्व ढहने जी कल्पना मात्र से ही हम लोग इतने आतंकित रहते हैं कि सच्चाई कहने -सुनने का साहस भी खो बैठते हैं। "
धरातल पर सदियों से यही तो होता रहा है।
इस पर फिर से विचार करने की आवश्यकता है।
आभार!
बहुत विचार्णीय विश्य है इस पर चर्चा कीावश्यक्ता भी है आभार इस आलेख के लिये
मुनीश रायजादा जी की फेसबुक के द्वारा टिप्पणी
Munish Raizada made a comment about your note "महापुरुषों की आलोचन...":
बहुत अच्छी विवेचना की है आपने.
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