Sunday, February 1, 2009

एक वार्तालाप की कामना

एक लंबे अरसे से सोचता आ रहा था कि कुछ लिखना शुरू करूँ - बौधिक प्रलाप नहीं, दिल की कही, मन की मचली, एक सार्थक अभिव्यक्ति, निष्पक्ष , निष्कपट, निर्मल जैसी दिल में आए वैसी कही। जिसमे यौवन की तरुणाई, आशायों की अंगडाई, एकाकीपन का दर्द, वक्त की करवट और रिश्तों की सिलवट साफ़ नज़र आए। आज अपनी ३६वी सूर्य परिक्रमा पूर्ण होने की अवसर पर मैंने इसकी शुरुआत भी कर दी। लगभग तीन साल हुए जब मैंने आपनी डायरी से कुछ कहा होगा और लगभग दस साल का अन्तराल होगा जब मैंने आखिरी बार गद्य मैं लिखा होगा (हाँ! इस अवधि में काव्य रचना तीन साल पहले तक चली) खैर इस कारण डायरी के बदले, इस संगणकीय माध्यम का उपयोग सरल हो गया। अब जितना सम्भव होगा उतना लिखूंगा -प्रतिदिन नहीं तो यदाकदा पर संवाद कायम रखने का प्रयास रखूँगा ।
सादर,
अप्रवासी सुधीर

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