जब लिखना शुरू किया, तब सोचा था कि स्वांतः सुखाय ही लिखना हैं किंतु जब आज अपने चिठ्ठे पर कुछ टिप्पणियां देखी तो मन हर्ष से कूद पड़ा। स्वागत हेतु ही सही पर इन टिप्पणियों ने मेरा उत्साह और अधिक बढ़ा दिया हैं। अपने से कई दीर्घकालिक और वरिष्ठ लेखकों की टिप्पणी पाकर ऐसा लगा जैसे किसी अग्रज का आशीष मिल गया हो। पढ़ने के पूर्व हृदयगति में वैसी ही तीव्रता आई जैसे कि किसी दसवी के विद्यार्थी का हृदय धड़कता हैं उसके बोर्ड की परीक्षा के परिणाम को पढने से पहले। और टिप्पणियां पढ़कर ऐसी मादकता अनुभव हुई कि पहले प्रेम की पहली नज़र ने मुझे छुआ हो। इन टिप्पणियों को पढने का मन बार बार हुआ मानो किसी शिशु को एक नया खिलौना मिल गया हो।
अजित वडनेरकर जी, लाल और बवाल (जुगलबन्दी) बंधू गण, संगीता पुरी जी और अभिषेक भाई आप सभी का मेरे इस प्रयास के लिए उत्साहवर्धन का हार्दिक आभार। मुझे आशा हैं की आप भविष्य में भी अपनी सार्थक टिप्पणियों से मेरा यूँ ही उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन करते रहेंगे।
आनन्दित, रोमांचित एवं उत्साहित,
अप्रवासी
अप्रवासी
7 comments:
ऐसे ही लिखते जाइए जी .....लोग तो अच्छा पढ़ते ही हैं ...
अनिल कान्त
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
सही है....लिखते जाएं....
आप तो बस नियमित लेखन करें, शुभकामनाऐं तो हैं ही-बधाईयाँ भी आती रहेंगी.
to phir lijiye..........ham choton kaa bhi aashirvaad....aur aapka aabhaar........!!
आपका स्वागत है। आप लिखेंगे तो हम पढ़ेंगे भी और अपनी राय भी टिप्पणी के रूप में देंगे ही।
घुघूती बासूती
लगे (लिख्ते) रहो सुधीर भाई
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