अभी कुछ दिनों पूर्व ब्लॉग वाणी पर काजल कुमार जी का एक कार्टून देखा था (kajalkumarcartoons: कार्टून:- जब इस ब्लॉगर का पाँव भारी होता है.. ) जिसमे एक ब्लॉगर की व्यथा गाथा थी। बेचारा ब्लॉगर चिकित्सक से परामर्श ले रहा होता हैं की पोस्ट लिख कर बेचैनी रहती हैं की किसी ने पढ़ा की नहीं। सच में उन्होंने उस हास्यपूर्ण अभियक्ति के माध्यम से एक तीखा सत्य उजागर किया हैं।
ब्लॉग-पोस्ट की रचना के बाद धड़कने तेज रहती हैं कि लोग क्या कहेंगे , पढेंगे भी या नहीं ...ठीक वैसे ही कि मानो ब्लॉग के पाठक न हुए लड़की वाले हो गए जो कि विवाह हेतु ब्लॉग-पोस्ट रुपी लड़के को परखने आ रहे हो। यदि सब ठीक रहा तो १०-१५ में से एक-आध अपनी जग-लुभावन रूपसी , हर दिल कि चाहत अपनी आत्मजा रूपी टिपण्णी का कन्या-दान कर देते हैं। परन्तु असली विडंबना तो यह हैं कि जहाँ कुछ राजसी व्यक्तित्व वाले ब्लॉग-पोस्ट बहु-पत्नी आनंद उठाते हैं वहीं अन्य कुछ जीवनपर्यन्त अविवाहित ही रह जाते हैं। और अचंभित करने वाली बात तो यह हैं कि कई बार यह दोनों तरह के ब्लॉग अक्सर एक ही माँ (लेखनी) की देन होते हैं (यहाँ सादर मैं यह भी स्पष्ट करना चाहूँगा कि मेरे कई वरिष्ठ लेखकों के ब्लॉग रुपी पुत्रों ने सदैव हो बहु-पत्नीय व्यवस्था को बनाये रखा हैं पर वे संख्या बल के आधार पर अपवाद ही गिने जायेंगे) इस प्रकार हर ब्लोगीय कुटुंब में कुछ पोस्ट कुवारे ही मिल जायेंगे ।
आईये हम मिलकर यह संकल्प ले की इस ब्लॉग जगत की सामाजिक विसंगति को दूर करेंगे और कम से कम हर ब्लॉग को एक संगिनी अवश्य देंगे।
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3 comments:
आपने हर ब्लोगर के अंतर्मन में झांक झांक कर जो कुछ कहा वोह शत प्रतिशत सत्य है
बहुत अद्भुत कल्पना है सुधीर जी !
काजल जी के कार्टून ने 'इस पोस्ट' को जन्म दिया और आप की पोस्ट को एक संगिनी भी मिल गई!
बधाई!
वाह-वाह!
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