Tuesday, March 31, 2009

अपरिपक्वता की सज़ा...

वरुण गाँधी पर रासुका? भारत के चुनावी माहौल में जहाँ वोटों के लिए क्या-क्या नहीं होता ...बाहुबली और माफिया बन्धुओ से भरी संसद में जहाँ आचार संघिता की बात भी मजाक लगती हो, जहाँ चुनाव के दौरान अथवा अन्यत्र भी भारत, भारत के सविधान को राजनैतिक लाभ हेतु नेता गरियाते मिल जायेंगे, जहाँ भारत माँ को गली देकर लोग संसद में जाने का मार्ग प्रशस्त करते हो, जहाँ कम्युनिस्ट चीन से सहानभूति संसद के दरवाजे की चाभी हो । ऐसे देश में धर्म और जाति ही चुनावी गणित तय करती हो -आग उगलना चुनाव का हथियार होता हैं। लेकिन यह एक मर्यादा के तहत ही होना चाहिए।

वरुण ने जो किया वो उचित नहीं था। उसकी भात्सना भी की जानी चाहिए । मैंने अपने पिछले चिठ्ठे में लिखा भी था की वरुण के सपनो के भारत की कल्पना भी पाप हैं। पर वरुण के भाषण उनकी राजनैतिक अपरिपक्वता के साक्ष्य हैं। युवा जोश और वैचारिक दिशाहीनता ही ज्यादा उजागर करतें हैं उनके भाषण...उनके उद्दंड शब्दों के लिए उनकी जेल-यात्रा और चुनाव-आयोग की जांच ही पर्याप्त थी। मैं नहीं समझता था कि पीलीभीत की जनता इतनी रक्त-पिपासु हैं कि जरा से भड़काऊ भाषणों से दंगे कर बैठेगी... वो भी हिंदू जन-मानस...कम से कम राष्ट्र को गृह-युद्ध तक तो नहीं ले जा रहे थे उनके भाषण...(जब हमारे देश में भारत माँ को कुतिया कहने और वंदे मातरम के समर्थन में लोगों का स्वाभिमान नहीं जगता तो ये तो अत्यन्त ही तुच्छ बात थी)। ऐसे में वरुण पर रासुका लगना भी सर्वथा अनुचित हैं... वो भी बहनजी के हाथो जिनके मनुवादी विरोधी भाषण ज्यादा घातक होते थे ....

वरुण पर रासुका केवल राजनैतिक हथियार एवं वोट एकत्रिक करने की कोशिश ज्यादा लगती हैं। वरुण के भाषणों की ही तरह उन पर लगी रासुका की घटना भी निंदनीय हैं और भारतीय लोकतंत्र का मखौल उड़ती हैं...

4 comments:

जयंत - समर शेष said...

Dekhate rahiye... isakaa ultaa asar hi hogaa.

~Jayant

संगीता पुरी said...

सही कहा है ... यहां वोटों के लिए क्‍या क्‍या नहीं होता है।

not needed said...

चुनावी हथकंडे हैं. सेकुलर राज में भी आप चन्द्र मोहन से चाँद मोहम्मद बन जाइये , नए विवाह का रास्ता खुल जाता है. अमेरिका में यह अधिकार क्यों नहीं मांगते? भारत में हैं न घर में ही जयचंद !

बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायण said...

पिलीभीत की जमीनी स्थिति आपको नहीं मालूम है। वह सचमुच ही बारूद का ढेर है। यहां एक महंत जी हैं जो हिंदुओं को मुसलमानों के विरुद्ध नित्य भड़काते रहते हैं, और खुलेआम दंगे कराते रहते हैं। इस परिप्रेक्ष्य में वरुण का द्वेष-वचन आसानी से बारूद को सुलगानेवाली चिंगारी बन सकती थी।

और दूसरी बात यह है कि चुनाव में दर्जनों अपराधी किसमत आजमा रहे हैं, इससे वरुण का अपराध धुल नहीं जाता है।

वरुण नौसिखिया नेता भी नहीं है, उससे कहीं कम उम्र के नेताओं की फौज चुनाव प्रचार में उतरी हुई है - सभी बड़े नेताओं के बेटे-बेटियां चुनाव प्रचार में लगे हैं - इनमें से किसी दूसरे ने इतना नौसिखियापन नहीं दिखाया है।

हां, मैं इस बात को लेकर आपसे बिलकुल सहमत हूं कि वरुण को जेल भेजने और उस पर रासुका ठोकने के पीछे राजनीति जरूर काम कर रही है।

वरुण के प्रति कड़ा रुख अपनाकर मायावती यह दिखाना चाहती है कि वह मुसलमानों की हितैषी है, और मुसलमानों के एक अन्य "हितैषी" और अपने घोर प्रतिद्वंद्वी मुलायम सिंह को ठेंगा दिखाना चाहती है।

वरुण के साथ जो हुआ वह ठीक तो नहीं हुआ, लेकिन उसके लिए सहानुभूति महसूस करना जरा कठिन ही है।

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